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पद२ / दादू दयाल
Kavita Kosh से
भाई रे ! ऐसा पंथ हमारा .
द्वै पख रहितपंथ गह पुरा अबरन एक अघारा .
बाद बिबाद काहू सौं नाहीं मैं हूँ जग से न्यारा .
समदृष्टि सूं भाई सहज में आपहिं आप बिचारा.
मैं,तैं,मेरी यह गति नाहीं निरबैरी निरविकरा .
काम कल्पना कदै न कीजै पूरन ब्रह्म पियारा.
एहि पथि पहुंचि पार गहि दादू, सो तब सहज संभारा.