भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पद-रज हुई / इसाक अश्क

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पद-रज हुई
गुलाल
लगा फिर ऋतु फगुनाई है।

मादल की
थापें हों या हों-
वंशी की तानें
ऐसे में
क्या होगा यह तो
ईश्वर ही जानें
खिले आग के
फूल फूँकती
स्वर-शहनाई है।

गंध-पवन के
बेलगाम
शक्तिशाली झोंके
कौन भला
इनको जो बढकर
हाथों से रोके
रक्तिम
हुए कपोल
दिशा कुछ-यों शरमाई है।