भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पद-2 / रामधारी सिंह 'काव्यतीर्थ'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ज्ञान-ध्यान नै हम्में जानौं महाअनाड़ी छौं
शरणागत केॅ पार लगैवोॅ गुरूजी तोरोॅ आदत छौं
एक लोहा पूजा-घर रहै, एक घर वधिक रहै
ई दुविधा पारस नै जानै कंचन करत खरै
एक नदिया, एक नाला कहावै गंगा जाय विलाय
वैसैं गुरूजी अबकी बेरिया हमरा लीहोॅ समाय ।