भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पद / 10 / बाघेली विष्णुप्रसाद कुवँरि

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

श्याम सों होरी खेलन आई।
रंग गुलाल की झोरि लिये सब नवला सज-सज आई।
बाके नैन चपल चल रीझै प्रियतम पै टकटकी लगाई॥
होड़ी-होड़ी देखा-देखी होरी की रँग छाई।
उतै सखन सँग आय बिराजे सुन्द त्रिभुवनराई॥
इतै सखिन सँग होरी खेलन राधेजू चलि आई।
बारम्बार अबीर उड़ावै डार कृष्ण अँग धाई॥
दाऊजी पिचकारि चलावै सुन्दरि मारि हटाई।
मधुर मधुर मुसुकात जाय पकड़े हलधर को भाई॥
राधेजू के नवल बदन से साड़ी देय हटाई।
निरखि अनूपम होरी खेलन सब ही हँसे ठठाई॥
विष्णु कुँवारि सखियाँ सब छोड़ीं हलधर भे सुखदाई।