भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पद / 3 / श्रीजुगलप्रिया
Kavita Kosh से
माई मोकों जुगल नाम निधि भाई।
सुख संपदा जगत की झूठी आई संग न जाई॥
लोभी को धन काम न आवै अंतकाल दुखदाई।
जो जोरे धन अधम करम तें सर्बस चलै नसाई॥
कुल के धरम कहा लै कीजै भक्ति न मन में आई।
‘जुगलप्रिया’ सब तजौ भजौ हरि चरन-कम मन लाई॥