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पद / 4 / चन्द्रकला

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ध्यान धरै तुम्हरो निसिबासर नाम तुम्हार रटै बिसरै ना।
गावत है गुन प्रेम-पगी मन जोवत है छिन दीठि टरै ना॥
‘चन्द्रकला’ बृषभानु-सुता अति छीन भई तन देखि परै ना।
बेगि चलो न बिलंब करो अति व्याकुल है वह धीर धरै ना॥