भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पद / 5 / राजरानी देवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नंगा अरधंगा शीश-गंगा चन्द्रभालवारो,
बैल पै सवार विष-भोजन करयो करै।
ब्याल-मुंड-माल प्रेम-डमरू त्रिशूल-धारी,
महा बिकराल चिता-भसम धरयो करै॥
योग-रंग-रंगा चारु चाखत धतूर अंगा,
अद्भुत कुढंगा देखि बालक डरयो करै।
‘रामप्रिया’ अजब तमासे चलु देखु-देखु,
ऐसो एक योगी राम-पायन परयो करै॥