विनयावली / तुलसीदास / पद 131 से 140 तक / पृष्ठ 4

पद (135-3) से (135-4) तक

 (135-3)

दूरि न सेा हितू हेरि हिये ही है।
छलहि छाँड़ि सुमिरे छोहु किये ही है।

 किये छोहु छााया कमल करकी भगतपर, भजतहि भजै।
जगदीश, जीवन जीवको, जो साज सब सबको सजै।।

 हरिहि हरिता, बिधिहि बिधिता, सिवहि सिवता जो दई।
सोइ जानकी-पति मधुर मूरति, मोदमय मंगल मई।।


(135-4)

ठाकुर अतिहि बड़ो , सील , सरल, सुठि।
ध्यान अगम सिवहूँ, भेंट्यो केवट उठि।।

भरि अंक भेंट्यो सजल नयन, सनेह सिथिल सरीर सो।
सुर, सिद्ध, मुनि, कबि कहत कोउ न प्रेमप्रिय रघुबीर सो।।

 खग , सबरि , निसाचर, भालु, कपि किये आपु ते बंदित बड़े।
तापर तिन्ह कि सेवा सुमिरि जिय जात जनु सकुचनि गड़े।।

इस पृष्ठ को बेहतर बनाने में मदद करें!

Keep track of this page and all changes to it.