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विनयावली / तुलसीदास / पद 131 से 140 तक / पृष्ठ 11

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(पद 131 से 140 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 11 से पुनर्निर्देशित)
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पद (137) से (138) तक

(137)
जो पै कृपा रघुपति कृपालुकी, बैर औरके कहा सरै।
होइ न बाँको बार भगतको, जो कोउ कोटि उपाय करै।1।

तकै नीचु जो मीचु साधुकी, सो पामर तेहि मीचु मरै।
बेद-बिदित प्रहलाद -कथा सुनि, केा न भगति -पथ पाउँ धरै?।2।

गज उधारि हरि थप्यो बिभीषन, ध्रुव अबिचल कबहूँ न टरै।
अंबरीष की सप सुरति करि, अजहुँ महामुनि ग्लानि गरै।3।

सों धौं कहा जु न कियो सुजोधन, अबुध आपने मनि जर।
प्रभु-प्रसाद सौभाग्य बिजय-जस , पांडवनै बरिआइ बरै।4।

जोइ जोइ कूप खनैगो परकहँ, सो सठ फिरि तेहि कूप परै ।
सपनेहुँ सुख न संतद्रोहीकहँ, सुरतरू सोउ बिष-फरनि फरै।5।

हैं काके द्वै सीस ईसके जो हठि जनकी सीवँ चरै।
तुलसिदास रघुबीर -बाहुबल सदा अभय काहू न डरै।6।

 (138)
कबहुँ सो कर-सरोज रघुनायक! धरिहौ नाथ सीस मेरे।
जेहि कर अभय किये जन आरत, बारक बिबस नाम टेरे।1।

जेहिं कर -कमल कठोर संभुधनु भंजि जनक-संसय मेट्यो।
जेहि कर-कमल उठाइ बंधु ज्यों, परम प्रीति केवट भेट्यो।2।

जेहि कर-कमल कृपालु गीधकहँ, पिंड देइ निजधाम दियो।
जेहि कर बालि बिदारि दास-हित, कपिकुल-पति सुग्रीव कियो।3।

आयो सरन सभीत बिभीषन जेहि कर-कमल तिलक कीन्हों।
जेहि कर गहि सर चाप असुर हति, अभयदान देवन्ह दीन्हों।4।
 
सीतल सुखद छाँह जेहि करकी, मेटति पाप, ताप, माया।
निसि-बासर तेहि कर सरोजकी , चाहत तुलसिदास छाया।5।