विनयावली / तुलसीदास / पद 131 से 140 तक / पृष्ठ 7
पद (136-4) से (136-5) तक
(136-4)
तू निज करम-जाल जहँ घेरो।
श्रीहरि संग तज्यो नहिं तेरो।।
बहुविधि प्रतिपालन प्रभु कीन्हों।
परम कृपालु ग्यान तोहिं दीन्हों।।
तोहि दियो ग्यान-बिबेक, जनम अनेककी तब सुधि भई।
तेहि ईसकी हौं सरन, जाकी बिषम माया गुनमई।।
जेहि किये जीव-निकयि बस, रसहीन, दिन -दिन अति नई।
सो करौ बेगि सँभारि श्रीपति, बिपति, महँ जेहि मति दई।
(136-5)
पुनि बहुबिधि गलानि जिय मानी।
अब जग जाइ भजौं चक्रपानी।।
ऐसेहि करि बिचार चुप साथी।
प्रसव-पवन प्रेरेउ अपराधी।।
प्रेरयो जो परम प्रचंड मारूत, कष्ट नाना तैं सह्यो।
सो ग्यान , ध्यान, बिराग, अनुभव जातना-पावक दह्यो।।
अति खेद ब्याकुल,अलप बल, छिन एक बोलि न आवईं।
तव तीब्र कष्ट न जान कोउ, सब लोग हरषित गावई।।