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पद 151 से 156 / कन्हैया लाल सेठिया

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151.
पाणी कोनी पण अठै
बही खड़ग री धार,
दी बैर्यां री तिस बुझा
रण बंक मोट्यार !

152.
पूत जण्या जामण इस्या
मरण जठै असकेल,
सूंघा सिर, मूंघा कर्या
पण सतियां नारेळ !

153.
दिन में भोभर बेकळू
सूरज खावै रीस,
बा ही लागे रात नै
लप्यो चन्नण पीस !

154.
धोरा सुवरण बोरलो
खेतड़लां रो चीर,
सदा सुहागण मरूधरा
कूख उजाळी वीर !

155.
रीत भांत जूनी नुईं
बगत बगत री बात,
पण कद छोडै परंपरा
जकी जींवती जात ?

156.
हुयो बावळो गांव सो
पड़ी कुअै में भांग,
मायड़ भासा भूलग्या
बोलै ऊटपटांग !