विनयावली / तुलसीदास / पद 181 से 190 तक / पृष्ठ 1
पद संख्या 181 तथा 182
(181)
 केहू भाँति कृपासिंधु मेरी ओर हेरिये। 
मोको और ठौर न, सुटेक एक तेरिये।
 
सहस सिलातें अति जड़ मति भई है। 
कासों कहौं कौन गति पाहनहिं दई है। 
पद-राग-जाग चहौं  कौसिक ज्यों कियो हौं। 
कलि-मल खल देखि भारी भीति भियो हैा। 
 
करम -कपीस बालि-बली,त्रास-त्रस्यो हौं। 
चाहत अनाथ-नाथ! तेरी बाँह बस्यो हौ। 
महा मोह-रावन बिभीषन ज्यों हयो हौ। 
त्राहि, तुलसिदास! त्राहि, तिहूँ ताप तयो हौ।
(182) 
नाथ! गुनगाथ सुनि होत चित चाउ सो। 
राम रीझबेको जानौं भगति न भाउ सो।1।
 करम, सुभाउ , काल, ठाकुर न ठाउँ सो। 
सुधन न, सुतन न ,सुमन, सुआउ सो।2। 
जाँचौं जल जाहि कहै अमिय पियउ सो।
 कासों कहौं काहू सों न बढ़त  हियाउ सो।3। 
बाप! ब्लि जाउँ ,आप करिये उपाउ सो। 
तेरे ही निहारे परै हारेहू सुदाउ सो।4।
 तेरे ही सुझाये सुझै  असूझ सुझाउ सो। 
तेरे ही बुझाये बूझै अबूझ बुझाउ सो।5। 
नाम अवलंबु-अंबु दीन मीन-राउ सो।
 प्रभुसों बनाइ कहौं जीह जरि जाउ सो।6।
सब भाँति बिगरी है एक सुबनाउ-सो। 
तुलसी सुसाहिबहिं दियो है जनाउ सो।7।
	
	