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पद 191 से 200 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 1

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पद संख्या 191 तथा 192

(191)

एक सनेही साचिलो केवल कोसलपालु।
प्रेम-कनोड़ो रामसो नहिं दूसरो दयालु।1।

तन-साथी सब स्वारथी, सुर ब्यवहार-सुजान।
आरत -अधम-अनाथ हित को रघुबीर समान।2।

नाद निठुर, समचर सिखी सलिल सनेह न सूर।
ससि सरोग , दिनकरू बड़े , प्रेम-पथ कूर।3।

जाको मन जासों बँध्यो, ताको सुखदायक सोइ।
सरल सील साहिब सदा सीतापति सरिस न कोइ।4।

सुनि सेवा सही को करै, परिहरै को दूषन देखि।
केहि दिवान दिन दीन की आदर-अनुराग बिसेखि।5।

खग-सबरी पितु-मातु ज्यों माने, कपि को किये मीत।
केवट भेंट्यो भरत ज्यों , ऐसो को कहु पतित-पुनीत।6।

देइ अभागहिं भागु को, को राखै सरन सभीत।
बेद -बिदित विरूदावली, कबि-कोबिद गावत गीत।7।

कैसेउ पाँवर पातकी , जेहि लई नामकी ओट।
गाँठी बाँध्यो दाम तो, परख्यो न फेरि खर-खोट। 8।

मन-मलीन ,कलि किलबिषी होत सुनत जासु कृत-काज ।
सो तुलसी कियो आपुनो रघुबीर गरीब -निवाज।9।

(192)

जौ पै जानकिनाथ सों नातो नेहु न नीच।
स्वारथ-परमारथ कहा, कलि कुटिल बिगोयो बीच।1।

धरम बरन आश्रमनिके पैयत पोथिही पुरान।
 करतब बिनु बेष देखिये , ज्यों सरीर बिनु प्रान।2।

बेद बिदित साधन सबै , सुनियत दायक फल चारि।
राम-प्रेम बिनु जानिबो जैसे सर सरिता बिनु बारि।3।

नाना पथ निरबान के, नाना बिधान बहु भाँति।
तुलसी तू मेरे कहे जपु राम-नाम दिन-राति।4।