भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पद 41 से 50 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 2

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पद 43 से 44 तक

(43)

जयति
सच्चिदव्यापकानंद परब्रह्म-पद विग्रह-व्यक्त लीलावतारी।
विकल ब्रह्मादि, सुर, सि, संकोचवश, सिद्ध, संकोचवश, विमल गुण-गेह नर-देह -धारी।1।
जयति
कोशलाधीश कल्याण कोशलसुता, कुशल कैवल्य-फल चारू चारी।
वेद-बोधित करम -धरम-धरनीधेनु, विप्र-सेवक साधु-मोदकारी।2।
जयति
ऋषि-मखपाल, शमन-सज्जन-साल, शापवश मुनिवधू-पापहारी।
भंजि भवचाप, दलि दाप भूपावली, सहित भृृगुनाथ नतमाथ भारी।3।
जयति
धारमिक-धुर, धी रघुवीर गुरू-मातु-पितु-बंधु- वचनानुसारी।
चित्रकुटाद्रि विन्ध्याद्रि दंडकविपिन, धन्यकृत पुन्यकानन-विहारी।4।
जयति
पाकारिसुत-काक-करतुति-फलदानि खनि गर्त गोपित विराधा।
दिव्य देवी वेश देखि लखि निशिचरी जनु विडंबित करी विश्वबाधा।5।
जयति
खर-त्रिशिर-दूषण चतुर्दश-सहस-सुभट-मारीच-संहारकर्ता।
गृन्ध्र-शबरी-भक्ति-विवश करूणासिंधु, चरित निरूपाधि, त्रिविधार्तिहर्ता ।6।
 जयति

 मद-अंध कुकबंध बधि, बालि बलशालि बधि, करन सुग्रीवराजा।
सुभट मर्कट-भालु-कटक-संघट सजत, नमत पदरावणानुत निवाजा।7।
जयति
 पाथोधि-कृत-सेतु कौतुक हेतु, काल-मन-अगम लई ललकि लंका।।
सकुल,सानुज,सदल दलित दशकंठ रण, लोक-लोकप किये रहित-शंका।8।
जयति
सौमित्र-सीता-सचिव-सहित चले पुष्पकारूढ़ निज राजधानी।
 दासतुलसी मुदित अवधवासी सकल, राम भे भूप वैदेहि रानी।9।।

(44)

जयति राज-राजेन्द्र राजीव लोचन, राम,
 नाम कलि-कामतरू, साम-शाली।
अनय-अंभोधि-कुंभज, निशाचर-निकर-
तिमिर-घनघोर-खरकिरणमाली।1।

जयति मुनि-देव-नरदेव दसरत्थके,
देव-मुनि-नर -वंद्य किय अवध-वासी।
लोकनायक-कोक-शोक-संकट-शमन,
भानुकुल-कमल-कानन-विकासी।2।

जयति श्रंगार-सर तामरस-दामदुति-
 देह, गुणगेह, विश्वोपकारी।
सकल सौभाग्य-सौंदर्य-सुषमारूप,
 मनोभव कोटि गर्वापहारी।3।
जयति सुभग सारंग सुनिखंग सायक शक्ति,
 चारू चर्मासि वर वर्मधारी।
 धर्मधुरधीर, रघुवीर, भुजबल अतुल,
 हेलया दलित भूभार भारी।4।