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विनयावली / तुलसीदास / पद 51 से 60 तक / पृष्ठ 1

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पद संख्या 51 तथा 52

(51),

देव-
जानकीनाथ, रघुनाथ, रागादि-तम-तरणि, तारूण्यतनु , तेजधामं।
सच्चिदानंद, आनंदकंदकंदाकरं, बिश्व-विश्राम, रामाभिरामं।1।

नीलनव-वारिधर-सुभग-शुभकांति, कटि पीत कौशेय वर वसनधारी।
रत्न-हाटक-जटित-मुकुट-मंडित-मौलि, भानु-शत-सदृश उद्योगकारी।2।

श्रवण कुंणल, भाल तिलक, भ्रूरूचिर अति, अरूण अंबोज लोचन विशालं।
वक्र -अवलोक, त्रैलोक-शोकापहं मार-रिपु -हृदय-मानस-मरालं।3।

नासिका चारू सुकपोल, द्विज वज्रदुति, अधर बिंबोपमा, मधुरहासं।
कंठ दर, चिबुक वर, वचन गंभीरतर, सत्य-संकल्प सुरत्रास-नासं।4।

 सुमन सुविचित्र नव तुलसिकादल-युतं मृदुल वनमालु उर भ्राजमानं।
भ्रमत आमोदवश मत्त मधुकर-निकर, मधुरतर मुखर कुर्वन्ति गानं।5।

सुभग श्रीवत्स, केयूर, कंकण,हार, किंकिणी-रटनि कटि -तट रसालं।
वाम दिसि जनकजासीन-सिंहासनं कनक-मृदुवल्लिवत तरू तमालं।6।

आजानु भुजदंड-मंडित वाम बाहु, दक्षिण पाणि बाणमेकं।
अखिल, मुनि-निकर, सुर , सिद्ध, गंधर्व वर नमत नर नाग अवनिप अनेकं।7।

अघन, अविछिन्न, सर्वज्ञ,सर्वेश, खलु सर्वतोभद्र-दाताऽसमाकं।
 प्रणतजन-खेद-विच्छेद-विद्या-निपुण नौमि श्रीराम सौमित्रिसाकं।8।

युगल पदपद्म सुखसद्म पद्मालयं, चिन्ह कुलिशादि शोभिति भारी।
 हनुमंत-हदि विमल कृत परममंदिर, सदा दासतुलसी-शरण शोकहारी।9।


(52),
देव-
कोशलाधीश, जगदीश, जगदेकहित, अमितगुण, विपुल विस्तार लीला।
 गायंति तव चरित सुपवित्र श्रुति-शेष -शुक -शंभु-सनकादि मुनि मननशीला।1।

 वारिचर-वपुष धरि भक्त-निस्तारपर, धरणिकृत नाव, महिमातिगुर्वी।
 सकल यज्ञांशमय उग्र विग्रह क्रोड़, मर्दि दनुजेश उद्धरण उवीं।2।

कमठ अति बिकट तनु कठिन पृष्ठोपरी, भ्रमत मंदर कंड़ु-सुख मुरारी।
प्रकटकृत अमृत, गो , इंदिरा, इंदु, वृंदारकावृंद-आनंदकारी।3।

मनुज-मुनि-सिद्ध-सुर-नाग-त्रासक, दुष्ट दनुज द्विज-धर्म-मरजाद-हर्ता।
 अतुल मृगराज-वपुधरित, बिद्दरित अरि, भक्त प्रहलाद-अहलाद-कर्ता।4।

 छलन बलि कपट-वटुरूप् वामन ब्रह्म, भुवन पर्यंन्त पद तीन करणं।
चरण-नख -नीर-त्रैलोक-पावन परम, विबुध-जननी-दुसह-शेाक-हरणं।5।

क्षत्रियाधीश-करिनिकर-नव-केसरी, परशुधर विप्र-सस-जलदरूपं।
बीस भुजदंड दससीस खंडन चंड वेग सायक नौमि राम भूपं।6।

 भूमिभर- भार- हर, प्रकट परमातमा, ब्रह्म नररूपधर भक्तहेतु।
वृष्णि-कुल-कुमुद-राकेश राधारमण, कंस-बंसाटवी-धूमकेतू।7।

 प्रबल पाखंड महि-मंडलाकुल देखि, निद्यकृत अखिल मख कर्म -जालं।
 शुद्व बोधैकघन, ज्ञान-गुणधाम, अज बौद्ध-अवतार वंदे कृपालं।8।

कालकलिजनित-मल-मलिनमन सर्व नर मोह-निशि -निबिड़यवनांधकारं।।
विष्णुयश पुत्र कलकी दिवाकर उदित दास तुलसी हरण विपतिभारं।9।


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