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पद 51 से 60 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 2

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पद संख्या 53 तथा 54


(53),

देव-
सकल सौभाग्यप्रद, सर्वतोभद्र-निधि, सर्व, सर्वेश, सर्वाभिरामं।
शर्व-हदि-कंजं-मकरंद-मधुकर रूचिर-रूप, भूपालमणि नौमि रामं।1।

सर्वसुख-धाम गुणग्राम, विश्रामपद, नाम सर्वसंपदमति पुनीतं।
निर्मलं शांत, सुविशुद्ध, बोधायतन, क्रोध-मद-हरण करूणा -निकेतं।2।

अजित, निरूपाधि, गोतीतमव्यक्त, विभुमेकमनवद्यमजमद्वितीयं।
प्राकृतं, प्रकट परमातमा, परमहित, प्रेरकानंत वंदे तुरीयं।3।

 भुधरं , सुंदरं, श्राीवरं, मदन -मद-मथन सौंदर्य-सीतातिरम्यं।।
 दुष्प्राप्य, दुष्प्रेक्ष्य, दुस्तर्क्य , दुष्पार,संसारहर, सुलभ, मृदुभाव-गम्यं।।4 ।

सम्यकृत,सत्यरत, सत्यव्रत,सर्वदा, पुष्ट , संतुष्ट, संकटहारी।
धर्मवर्मनि ब्रह्मकर्मबौधिक, विप्रयूज्य, ब्रह्मण्यजनप्रिय, मुरारी।5।

नित्य, निर्मम, नित्यमुक्त, निर्मान, हरि, ज्ञानघन, सच्चिदानंद मूलं।
सर्वरक्षक, सर्वभक्षकाध्यक्ष, कूटस्थ, गूढार्चि, भक्तानुकूलं।6।

 सिद्व साधक साध्य ,वाच्य-वाचकरूप,मंत्र -जापक-जाप्य, सृष्टि-सृस्टा।
परम कारण , कन्जनाभ, जलआभतनु, सगुण, निर्गुण , सकल दृष्य -द्रष्टा।7।

व्योम-व्यापक, विरज, ब्रह्म वरदेश, बैकुठ, वामन बिमल ब्रह्मचारी।
 सिद्ध- वृंदारकावृंदवंदित सदा, खंडि पाखंड-निमूर््लकारी।8।

पूरनानंदसेदोह, अपहरन संमोह-अज्ञान, गुण-संन्निपातं।
बचन-मन-कर्म-गत शरण तुलसीदास त्रास-पाथोधि इव कुंभजातं।9।

(54),
देव-
 विश्व-विख्यात, विश्वेश, विश्वायतन, विश्वमरजाद, व्यालारिगामी।
ब्रह्म, वरदेश, वागीश, व्यापक, विमल, विपुल, बलवान, निर्वानस्वामी।1।

प्रकृति, महतत्व, शब्दादि गुण, देवता व्योम, मरूदग्नि, अमलांबु, उर्बी।
बुद्धि, मन, इंदिय, प्राण, चितात्मा, काल, परमाणु, चिच्छक्ति गुर्वी।2।

 सर्वमेवात्र त्वद्रूप भूपालमणि! व्यक्तव्यक्त, गतभेद, विष्णो।
भुवन भवदंग, कामारि-वंदित पदद्वंद्व मंदाकिनी-जनक, जिष्णो।3।

 आदिमध्यांत, भगवंत! त्वं सर्वगतमीश, पश्यन्ति ये ब्रह्मवादी।
यथा पट-तंतु, घट-मूर्त्तिका, सर्प-स्त्रग, दारू करि, कनक-कटकांगदादी।4।

गूढ़, गंभीर,गर्वघ्न ,गूढार्थवित, गुप्त, गोतीत, गुरू, ग्यान-ग्याता।
 ग्येय, ग्यानप्रिय, प्रचुर गरिमागार, घोर -संसार-पर, पार दाता।5।

सत्यसंकल्प, अतिकल्प, कल्मांतकृत, कल्पनातीत, अहि-तल्पवासी।
 वनज-लोचन, वनज-नाभ , वनदाभ-वपु, वनचरध्वज-कोटि-लावण्यरासी।6।

सुकर, दुःकर, दुराराध्य, दुर्व्यसनहर, दुर्ग, दुर्द्धर्ष, दुर्गात्तिहर्ता।
 वेदगर्भार्भकादर्भ- गुनगर्व, अर्वागपर-गर्व-निर्वाप-कर्ता।7।

भक्त-अनुकूल, भवशूल-निर्मूलकर, तूल-अघ-नाम पावक-समानं।
 तरलतृष्णा-तमी-तरणि, धरणीधरण, शरण-भयहरण, करूणानिधानं।8।

बहुल वृंदारकावृंद-वंदारू-पद-द्वंद्व मंदार-मालोर-धारी।
पाहि मामीश संताप-संकुल सदा दास तुलसी प्रणत रावणारी।9।