पद 51 से 60 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 3
पद संख्या 55 तथा 56
(55),
देव-
संतापहर, विश्व-विश्रामकर,राम कामारि, अभिरामकारी।
शुद्ध बोधायतन, सच्चिदानंदघन, सज्जनानंद-वर्धन, खरारी।1।
शील-समता-भवन, विषमता-मति -शमन, राम, रामारमन,रावनारी।
खड़गकर चर्मवर, वर्मधर , रूचिर कटि तूण, शर-शक्ति-सारंगधारी।2।
सत्यसंधान, निर्वानप्रद, सर्वहित,सर्वगुण -ज्ञान-विज्ञानशाली।
सघन-तम- घोर-संसार-भर-शर्वरी नाम दिवसेश खर-किरणमाली।3।
तपन तीच्छन तरून तीव्र तापघ्न, तपरूप,तनभूप, तमपर, तपस्वी।
मान-मद-मदन -मत्सर-मनोरथ-मथन ,मोह -अंभोधि-मंदर, मनस्वी।4।
वेद-विख्यात, वरदेश,वामन, विरज, विमल,वागीश,वैकुंठस्वामी।
काम-क्रोधादिमर्दन, विवर्धन छमा, शांति-विग्रह, विहगराज-गामी।5।
परम पावन, पाप-पुंज-मुंजाटवी-अनल इव निमिष निर्मूलकर्ता।
भुवन-भूषण, दूषणारि, भुवनेश, भूनाथ, श्रुतिमाथ जय भुवनभर्ता।6।
अमल, अविचल , अकल, सकल, संतप्त-कलि-विकलता-भंजनानंदरासी।।
उरगनायक शयन,तरूणपंकज-नयन, छीरसागर-अयन,सर्ववासी।7।
सिद्ध-कवि-कोविदानंद-दायक,पदद्वंद्व मंदात्ममनुजैर्दुरापं।
यत्र संभूत अतिपूत जल सुरसरी दर्शनादेव अपहरति पापं।8।
नित्य निर्मुक्त, संयुक्तगुण, निर्गुणानंद, भगवंत , न्यामक, नियंता।
विश्व -पोषण-भरण, विश्व-कारण-करण, शरण तुलसीदास-त्रास-हंता।9।
(56),
देव-
दनुजसूदन, दयासिंधु, दंभापहन दहन दुर्दाेष, दर्पापहर्ता।
दुष्टतादमन,दमभवनद्व दुःखौघहर दुर्ग दुर्वासना नाश कर्ता।1।
भरिभूषण, भानुमंत, भगवंत , भवमंजनाभयद, भुवनेश भारी।।
भावनातीत, भववंद्य, भवभक्त हित, भूमिउद्धरण, भूधरण-धारी।2।
वरद वनदाभ, वागीश, विश्वात्मा, विरज, वैकुण्ठ-मंदिर-विहारी।
व्यापक -व्योम, वंदारू , वामन, विभो, ब्रह्मविद, ब्रह्म, चिंतापहारी।3।
सहज सुंदर, सुमुख, सुमन, सुभ सर्वदा, शुद्ध सर्वज्ञ, स्वछन्दचारी।
सर्वकृत, सर्वभृत,सर्वजित,सर्वहित, सत्य-संकल्प, कल्पान्तकारी।4।
नित्य, निर्मोह, निर्गुण, निरंजन, निजानंद, निर्वाण, निर्वाणदाता।
निर्भरानंद, निःकंप, निःसीम, निर्मुक्त निरूपाधि, निर्मम, विधाता।5।
महामंगल मूल, मोद- महिमायतन, मुग्ध-मधु-मथन,मानद, अमानी।
मदनमर्दन, मदातीत, मायारहित,मंजु-मानाथ,पाथोजपानी।6।
कमल -लोचन, कलाकोश, कोदंडधर, कोशलाधीश, कल्याणराशी।।
यातुधान प्रचुर मत्करि-केसरी, भक्तमन-पुण्य-आरण्यवासी।7।
अनघ,अद्धैत अनवद्य, अव्यक्त, अज, अमित, अविकार, आनंदसिंधों।
अचल अनिकेत, अविरल, अनामय, अनारंभ, अंभोदनादहन-बंधो।8।
दासतुलसी खेदखिन्न, अपान्न इह , शोकसंपत्न अतिशय सभीतं ।
प्रणयपालक राम, परम करूणाधाम, पाहि मामुर्विपति, दुर्विनीतं।9।