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Kavita Kosh से
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ये अवधेसके सुत दोऊ |
चढ़ि मन्दिरनि बिलोकत सादर जनकनगर सब कोऊ ||
स्याम गौर सुन्दर किसोर तनु, तून-बान-धनुधारी |
कटि पट पीत, कण्ठ मुकुतामनि, भुज बिसाल, बल भारी ||
मुख मयङ्क, सरसीरुह लोचन, तिलक भाल, टेढ़ी भौंहैं |
कल कुण्डल, चौतनी चारु अति, चलत मत्त-गज-गौंहैं ||
बिस्वामित्र हेतु पठये नृप,इनहि ताडुका मारी |
मख राख्यो रिपु जीति, जान जग, मग मुनिबधू उधारी ||
प्रिय पाहुने जानि नर-नारिन नयननि अयन दये |
तुलसिदास प्रभु देखि लोग सब जनक समान भये ||