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कौसिक कृपालहूको पुलकित तनु भौ |
उमगत अनुराग, सभाके सराहे भाग,
देखि दसा जनककी कहिबेको मनु भौ ||

प्रीतिके न पातकी, दियेहू साप पाप बड़ो,
मख-मिस मेरो तब अवध-गवनु भौ |
प्रानहूते प्यारे सुत माँगे दिये दसरथ,
सत्यसिन्धु सोच सहे, सूनो सो भवनु भौ ||

काकसिखा सिर, कर केलि-तून-धनु-सर,
बालक-बिनोद जातुधाननिसों रनु भौ |
बूझत बिदेह अनुराग-आचरज-बस,
ऋषिराज जाग भयो, महाराज अनु भौ ||

भूमिदेव, नरदेव, सचिव परसपर
कहत, हमहिं सुरतरु सिवधनु भौ |
सुनत राजाकी रीति उपजी प्रतीति-प्रीति,
भाग तुलसीके, भले साहेबको जनु भौ ||