पनघट / शिशु पाल सिंह 'शिशु'
आड़ गहरी ले, जीवन-श्रोत बहाने वाले ओ पनघट!
अदृश्यों का घूँघट-पट डाल, लजाने वाले ओ पनघट!
तनिक देखो मेरी भी ओर, मरू-स्थल से चल आया हूँ;
वहाँ की मृग-तृष्णा से भटक, दहकती प्यासें लाया हूँ।
तुम्हारे पास चूँकि है, तप्त समस्याओं का शीतल हल;
तुम्हारे पास चूँकि है, थके पथिक की गतियों का सम्बल।
तुम्हारे पास चूँकि है, रिक्त-घटों को भरने वाला जल;
तुम्हारे पास चूँकि है, अखिल तृप्तियों का संजीवन-बल।
मुझे भरने न तलैया ताल, नदी-नद नहीं बहाने हैं;
सिंधु या महासिंधु भी नहीं, तरंगों से लहराने हैं।
एक ही बूँद माँग कर तुम्हें बनाने आया हूँ दाता;
तृषा से त्राहि-त्राहि कर तुम्हें, बनाने आया हूँ त्राता।
अनेकों बार प्यास के पास, तुम्हारा पहुँचा है पानी।
भाग्य समझो जो जल के पास, जलन की आई हैरानी॥