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पनिभरक डाबा / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

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1
अछि आत्म कथा मनहरण हमर।
जीवनो बनल अछि मरण हमर।
पण्डिते कोड़ि अनलनि हमरा
बस पानि मिला सनलनि हमरा।
करवह दुर्दशा चाक पर दै
से कनियों नहिं कहलनि हमरा॥
सबहक समक्ष कहि सुनबइ छी
दुःखक जे अछि उपकरण हमर।
अछि आत्मा कथा मन हरण हमर॥
2
हम डोंड़ा खेतक सार्द्र माँटि
लोढ़ी सँ हमरा पीटि पाटि
अत्यन्त सुकोमल बना, अपन-
शुभ-चक्रक ऊपर देल साटि॥
ओ प्रबल दण्ड सँ घुमलहंु तैं-
खेदित अछि अन्तःकरण हमर।
अछि आत्म कथा मनहरण हमर॥
3
सहृदय सुनव सदय किछु भै
छल सुखद दिवस सुन्द अतिशय।
पण्डितक काज ई परपीड़न
जे घूमथि जगती मे निर्भय॥
स्वार्थक बस सुख ओ मनोरथक
कैलन्हि अछि मिलि आहरण हमर॥
4
दिन दिन दोगुन दुख बढ़ल गेल
कर्मक रेखा नहि पढ़ल गेल।
मन मोहक तँ आकर हमर
बस ठोकि ठाकि कै गढ़ल गेल॥
गोरहा करसीक विशाल गोल
छल बनल सुखद आवरण हमर॥
अछि आत्मा कथा मनहरण हमर॥
5
बाँकी किछु और समीक्षा छल।
बाँकी जीवनक परीक्षा छल॥
ताहू पर अग्निक दया भेल।
भेटल तावत नहिं दीक्षा छल॥
ओ प्रखर ताप सँ दग्ध् हृदय
के कै सकैछ संवरण हमर?॥
अछि आत्म कथा मनहरण हमर॥
6
पुनि रक्तरूप भै गेल हमर।
विख्यात रूप भै गेल हमर॥
एकसर नहिं दस परिवार सहित
परहित मे चुप भै गेल हमर॥
परहित साधन मे जौड़ आइ
बनले अछि कथा मनहरण हमर॥
7
नित लै जा कै बड़का हनार।
दश बेर डुबाबै सार फार॥
हम हाय! अभागल कते पैघ
नहि उद्धारक कोनों प्रकार॥
संसार शून्य, जीवन अन्हार,
इति अछि अतीत संस्मरण हमर॥
अछि आत्म कथा मनहरणा हमर॥
8
एतवा धरि गौरव अछि हमरो।
एतवा धरि वैभव अछि हमरो॥
क्षण भग्ङुर जग, जीवन, दूनू
एतबा धरि अनुभव अछि हमरो॥
विश्वक कहोच्चता, वा लघुता,
नहिं कै सकैल अनुकरण हमर।
अछि आत्म कथा मनहरण हमर।
9
अछि नाम हमर पनिभर डाबा।
हमरो अछि ई बड़का दाबा॥
नैयायिक गण पण्डित जे लै,
से घट थिकाह हमरे बाबा॥
हुनकर प्रलयें अछि प्रलय तथा
जागृतिएँ अछि जागरण हमर॥
अछि आत्म कथा मनहरण हमर॥