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पप्पियों की पीढ़ियाँ / संजय चतुर्वेदी
Kavita Kosh से
वे आए
अपने इतिहास को अपनी ज़मीन पर छोड़कर
कहीं कोई कमरा किराए पर ले
धीरे-धीरे उन्होंने जीत लिए शहर
उनके बच्चों ने
पेट में ही सीख लिया शहर जीतना
और तोड़ डालीं
मिली थीं अग़र कुछ मूर्तियाँ उन्हें गर्भ में।