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पप्पू प्यारे जी / रमेश तैलंग

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सुनिए पप्पू प्यारे जी !
ये क्या ढंग तुम्हारे जी ?

घर आते ही जल्दी-जल्दी
बस्ता फ़ेंका इधर-उधर,
ड्रैस उतारी और डाल दी
गोल-गोल कर बिस्तर पर;
टाई, बैल्ट पड़े सब मारे-मारे जी ।

कोई भी हो चीज़ सभी को-
इज्ज़त देनी पड़ती है,
अगर ढंग से रखो उसे तो
वो ज़्यादा दिन चलती हि,
पर हम तो समझा-समझा कर हारे जी ।