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परंतप / तेज राम शर्मा

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संयोग से मेरे ड्राईवर का नाम ईश्वर है
क्या कहूँ मैं उससे?
मेरे शहरे के लोग
सूर्य-उदय से पहले ही
युद्ध की घोषणा कर चुके हैं
उनका शंखनाद
अंतरिक्ष को भयभीत कर रहा है
देर रात तक
उनके घर की दीवारें काँपती रहती हैं
कहाँ ले जाए वह मेरे वाहन को ?
इस अकेलेपन की भीड़ में
कहाँ हैं मेरे सगे संबन्धी?
किसके विरुद्ध खड़ा हूँ मैं ?

‘यानि कावि च पापानी’
कौन रख रहा है इन पापों का लेखा-जोखा ?
बार-बार क्यों खड़ा किया जाता है मुझे
अक्षौहिणी सेना के विरुद्ध

अख़बारों से निरंतर चूती रहती रक्त की बूँदें
बड़वानल छू जाता है
धरती का ओर-छोर
आकाश-सा धनुष तान कर
कहो किस लक्ष्य पर छोड़ दूँ
शब्द भेदी बाण?
कौन से भविष्य को कर दूँ धराशायी
जीवन और मरण
 के बीच के
घोर अँधकार में

कौन सी दुर्बलता और कौन से विषाद को
छोड़ दूँ मैं

संयोग से मेरे ड्राईवर क नाम ईश्वर है
क्या कहूँ मैं उससे ?