भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

परथमहि आहे सिब सासुर गेला / अंगिका लोकगीत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

पहले पहल ससुराल जाने पर शिव शरमाने लगे। फिर, रात में चकमक सेज पर बैठे। सालियों और सलहजों ने हास-परिहास करना शुरू किया। अंत में गौरी और शिव एक ही सेज पर सोने गये। गौरी शरमाने लगीं। प्रथम मिलन में एक अपरिचित के पास जाने में कुमारी की जो मनःस्थिति होती है, उसका अच्छा चित्रण इस गीत में हुआ है।

परथमहिं आहे सिब सासुर गेला, परथम रहल सकुचाय,
चलु सिब कोहबर हे।
सिब गौरा जब जौर<ref>एकत्रित; एक साथ</ref> भेला सिब लेला अँगुरी लगाय,
चलु सिब कोहबर हे॥1॥
चिकमिक<ref>चकमक</ref> सेज बिछाबल, मूँगा मोती लागल किनार,
चलु सिब कोहबर हे।
मानिक दिअरा बराबल, गौरी लेला अँगुरी लगाय,
चलु सिब कोहबर हे॥2॥
सारियो<ref>सालियाँ</ref> लग में बैठाबल, सरहोजी रचल धमार<ref>उछल-कूद; खेल</ref>,
चलु सिब कोहबर हे।
सिब गौरी दुनूँ एक सेज सूतल, सरम लागय आठो अँग<ref>आठ अंग-घुटना, छाी, पैर, हाथ, सिर, बचन, बुद्धि और दृष्टि</ref>,
चलु सिब कोहबर हे॥3॥

शब्दार्थ
<references/>