परदा-बेपरदा / लालित्य ललित
आधुनिक महिला
पगलाती है तो ज़माना
पगलाता है
अपनी हदें पार करता है
फंसता है
एम.एम.एस. कांड
सी.डी. का बुख़ार
घूस, थाने का चक्कर
अबॉर्शन का दौर
अख़बारों की सुर्ख़ियां
ब्रेकिंग न्यूज़ की चुस्कियां
एक अंतराल बाद
वही माडर्न युवती
चुपचाप शादी करवा
नये ‘घर’ जाती है
मुंह दिखाई इत्यादि की रस्म
घर की बन्नो बन
निभाती है
घर-परिवार में
रम जाती है
आधुनिक महिला
पति खुश है
बीवी से, बच्चों से
आख़िर
हर किसी का अतीत होता है
लेकिन पति अच्छा है
सुशील है उसे चिंता है
इक्कीसवीं सदी के
उज्ज्वल भविष्य की
वह पीछे पलट चुके
इतिहास को दोहराना नही
चाहता
पत्नी, पति पा कर अत्यंत
प्रसन्न है
आधुनिक महिला मुस्कराती हुई
रात का खाना बनाने
रसोई में चली जाती है
अजी !
सुनती हो
ज़रा रोटी चुपड़ देना
ज़रूर ! पत्नी मुस्कराते -
हुए कहती है !