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परदेशी नै छुटवा दिन्हां खेलणा और खाणा री / मेहर सिंह

राजकुमारी आगे क्या कहती है-

आदर मान सब घटवा दिन्हां नाम हमारा मिटवा दिन्हां
परदेशी नै छुटवा दिन्हां खेलणा और खाणा री।टेक

न्यूं मेरै क्रोध शरीर म्हं जागै
यो दिल पक्षी की तरियां भागै,
मेरी बातां मैं छोहना,
थारै आगै ईब ल्हको ना
सुपने म्हं बी सुख कोन्या, जो आधीन बिराणा री।

मैं के किसे पै श्यान टेकूं सूं,
मैं तो अपणी गुप्त चोट सेकूं सूं,
देखूं सूं जब हंसया रहै सै,
ईश्क रूप मैं धंसया रहै सै,
मेरे मन मैं बसया रहै सै, वो परदेसी मर ज्याणां री।

मनैं तो ना चाल चली ओगण की,
कद तकदीर फूटी निर्धन की,
मैं तो नागण सी छीड़ी सहूं सूं,
घर कुणबै तैं लड़ी रहूं सूं,
धरती के म्हां पड़ी रहूं सूं, तज दिया पांत सिराह्णा री।

आज होग्या दुख नया
जीव किस फंदे बीच फहया,
वो चल्या गया ध्यान डिगा कै,
काया के म्हां ईश्क जगा कै,
सुण ले कान लगाकै, यो मेहर सिंह का गाणा री।