मैथिली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
परदेसिया के नारि सदा दुखिया, परदेशिया
चारि महीना के गरमी लगतु हैं
कहियो ने सुतलौं डोला के बेनिया, परदेशिया
चरि महीना बुन्द पड़तु हैं
कहियो ने सुतलौं छेबा के बंगला, परदेशिया
चारि महीना जाड़ लगतु हैं
कहियो ने सुतलौं भरा के सिरका
परदेसिया के नारि सदा दुखिया, परदेशिया