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परदेस में गर्मी - अभी बहुत है देर / मानोशी
Kavita Kosh से
अभी बहुत है देर
हवा की ठिठुराती सिहरन
जाने में
उधर देस में गरम तवे ज्यों
रस्ते का डामर
पिघलाते
सूखे पत्ते घुँघरू बांधे
लू के संग में
घूमर गाते
और इधर शैतान हवा ने
बर्फ़ उड़ा दी
वीराने में
खट्टे अमवा चख कर
पागल हुई
कोकिला कूक-कूक कर
बिरहा में जल प्रीतम को
आवाज़ लगाती
दोपहरी भर
पार समंदर हंस युगल भी
होंगे घर वापस
आने में
शाम हुई जो घनी घटाएँ
अनायास ही घिर आती हैं
तेज़ हवा,
ओलों की बारिश
जलती धरती
सहलाती हैं
इधर बर्फ़ की आँधी के डर
सूरज उगता तहख़ाने में