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परदे / पवन करण
Kavita Kosh से
तुम्हारे चेहरों जैसे नहीं हमारे चेहरे
फिर भी हमारे चेहरे वहाँ-वहाँ मौजूद
जहाँ पहुँचना तुम्हारे वश में नहीं
हम चश्मदीद गवाह तब से अब तक
बंद कमरों में लिखे जाते रहे इतिहास के
हम जानते हक़ीक़त उन निर्दशों,
निर्णयों की जो बँटते सबके बीच
बाहर आकर गोपनीय कक्षों से
हम साफ-साफ पहचानते मुखौटों में छिपे
उन चेहरों को जिन्हें देख पाना
तुम्हारे लिए संभव नहीं
हम ही देख पाते उन्हें मुखौटे-विहीन
उनके अपने असली चेहरों में
तुम्हारी आँखों जैसी नहीं हमारी आँखें
फिर भी हमारी आँखों में क़ैद
कमरों के भीतर का सच