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परमोद / श्याम महर्षि
Kavita Kosh से
गोडै तांई धोती
अर
माथै मण्डासो बान्धया
आं लोगा नैं
ओजूं ई समझै
बोझां दांई,
इणां रै
भोळपणै री आंच सूं
बै सैकता रैवै
रोटी।
सतपकवानी रै
जीमण सूं
उथब‘र
हेली री खिड़क
कै दूकान रै पिछवाड़ै सूं
देंवता रैवै सीख
बै बरसां सूं
कै थारी आ जूणी
अर भीखै रा दिन
माण्ड राख्या है
उपरलो-द्वारका रो नाथ।
थै हक नै बिसरौ
अर करतब नै
राखौ याद
सेवा कराणी नीं
सेवा करणी
थांरो फरज है।
थै
कारज करो
अर न्हासता रैवो
म्हारै खातर
थारौ सुरग-म्हारौ सुरग
न्यारो-न्यारो है
कारज करणौ
अर करवाणौ
दोनूं ई करतब है
जुगां जुगां सूं
सुणता रैया परमोद
ऐ बोझै बरका लोग।