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परम्परा के विरूद्ध / श्रीरंग
Kavita Kosh से
यह कैसी परम्परा है
कि; परम्पराओं को
हजारो हजार वर्षों से ढो रहे हैं
सड़न और दुर्गन्ध सहते हुए भी .....
यह कैसी परम्परा है
कि; बन्दरिया की तरह
मरे बच्चे को सीने से चिपकाए
फिर रहे हैं
परम्पराओं के सड़ गल जाने के बावजूद .......
यह कैसी परम्परा है
कि; परम्पराओे को तोड़ना भी पाप है ......
यह कैसी परम्परा है कि
डाली ही नहीं जा सकती
परम्पराओें को तोड़ने की परम्परा ....।