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परम नेत्र / कैलाश पण्डा

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मेरे परम नेत्र
जिसका प्रकाश
अन्तः की ओर
प्रविष्ट कराता
सुगम दण्डियों के सहारें
पदचाप
राह दिखलाते
चरण की शरण में
मैं सहजता से
अनुगामी बनता
कभी ठहरे जाता
तब एक विशिष्ट
मादक द्रव्य सा झरकर
मुझे उन्मुक्त
गगन की सैर करवाता
मैं विलीन
मुक्त विरत सा
स्वाद विशेष पाता
करता स्नान
अमृत जब झरता
नृत्य करता/उछलता/गद्गद् होता
सर्वत्र फैल जाता
मैं विराट बन जाता।