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परम पूज्य स्वर्गीय पिता जी को / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
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तुम चले गये मैं कर न सका अन्तिम दर्शन!
तुम चले गये मैं कर न सका अन्तिम वन्दन!!
मिल गए शून्य में साँसों के अन्तिम कम्पन!
पहुँचा जब तक थम गई चिता की भी धड़कन!!
तुम साधक बन चल पड़े बिना कोई साधन!
बल रहा साधना का बस तुमको आजीवन!!
पग उठे आत्म-विश्वास लिये पथ पर प्रतिक्षण!
अधरों पर होता रहा हास का चिर नर्तन!!
तुमने मानव में किया ईश का आराधन!
भर रहा स्नेह से था स्वर्णिम दीपक-सा मन!!
उस दीपक से ही मिली मुझे यह ‘ज्योति-किरण!
कर रहा तुम्हारी वस्तु तुम्हें ही मैं अर्पण!!