भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
परवश / हरीश बी० शर्मा
Kavita Kosh से
मेरे सत्य के पास
रचाव की क्षमता नहीं
मेरी मौलिकता के बैनर तले
गीत कोई बनता नहीं
घुमड़ती अनुभूतियों का आग्रह
भौंथरे हुए अक्षर
अभिव्यक्ति विवश
बरसती नहीं
बीज पनपतें नहीं।