परवाना और जुगनू / इक़बाल
परवाना
परवाने की मंज़िल से बहुत दूर है जुगनू
क्यों आतिशे-बेसूद<ref>बेकार की अग्नि</ref> से मग़रूर<ref>गर्वित</ref> है जुगनू
जुगनू
अल्लाह का सो शुक्र कि परवाना नहीं मैं
दरयूज़ागरे-आतिशे-बेगाना<ref>पराई अग्नि का याचक</ref> नहीं मैं
मेरा गुनाह मुआफ़
मैं भी हाज़िर था वहाँ ज़ब्ते-सुख़न<ref>अपनी बात कहने से स्वयं को रोक न सका </ref> कर न सका
हक़ से जब हज़रते- मुल्ला को मिले हुक़्मे-बहिश्त<ref>स्वर्ग में जाने का आदेश</ref>
अर्ज़ की मैंने इलाही मेरी तक़सीर<ref>अपराध </ref> मुआफ़
ख़ुश न आएँगे इसे हूरो-शराबो-लबे-ख़िश्त<ref>परियाँ / अप्सराएँ, मदिरा और बाग़</ref>
नहीं फिरदौस<ref> स्वर्ग</ref> मुक़ामे-जदलो-क़ाल-ओ-मुक़ाल<ref>दंगा-फ़साद और वाद-प्रतिवाद की जगह</ref>
बहसो-तकरार इस अल्लाह के बन्दे की सरिश्त<ref>आदत</ref>
है बदआमोज़ी-ए-अक़वामो-मलल<ref>अलग-अलग जातियों में मीन-मेख करना </ref> काम इसका
और जन्नत में न मस्जिद, न कलीसा<ref>गिरजाघर</ref> न कनिश्त<ref>मंदिर </ref>