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परवाह / हरीश करमचंदाणी
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किसीको किसी की परवाह नहीं
सब अपने आप में रहते हैं मस्त
मैं समझ नहीं पाया
वह इसे किस अर्थ में कह रहा था
मैंने देखा
वह हँसा
मैं इतमिनान की साँस लूँ
पेशतर मुझे सुनाई दी
उसी की कराह