भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
परशुराम प्रसंग / राघव शुक्ल
Kavita Kosh से
जनकपुरी में शिव धनु टूटा, है देवों ने हर्ष मनाया
परशुराम ने क्रोध दिखाया
पैर पटक आए मिथिला में
आंखें लाल बाल बिखरे हैं
फरसा हाथों उठा लिया है
मानो यम का रूप धरे हैं
पूछ रहे हैं क्रोधित होकर, किसने दुस्साहस दिखलाया
उठकर लखनलाल अब बोले
उनका धीरज छूट गया था
यह जो शिव का धनुष पुराना
बस छूते ही टूट गया था
क्रोधी ऋषि बोले रे बालक, तुझे काल ने आज बुलाया
परशुराम के सम्मुख तत्क्षण
आसन से उठकर प्रभु आए
श्याम सुभग श्री वक्ष स्थल में
भृगु के चरणचिन्ह दिखलाए
विह्वल होकर परशुराम ने प्रभु को अपने गले लगाया