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परशुराम श्रीराम भीम अर्जुन उद्दालक / गुजराती बाई

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परशुराम श्रीराम भीम अर्जुन उद्दालक।
गौतम शक्कर-सरिस धर्म सत् के संचालक॥
उत्साही दृढ़ अंग प्रतिज्ञा के प्रतिपालक।
शारीरिक मस्तिष्क शक्ति-बल अरिगण-घालक॥
काज करैं मन लाय, बनै शत्रुन उर-शालक।
अब भारतमाताहिं चाहिए ऐसे बालक॥1॥
दुर्बल अरु भयभीत सदा, जो कहत पुकारी।
‘अरे बाप! यह काज हमैं सूझत अति भारी’’॥
‘‘मैं नाहीं कर सकत’’ शब्द मुख तें न उचारैं।
‘‘हाँ करिहौं उद्योग’’, सहित उत्साह पुकारैं॥
सत्यभाव ते कहैं करैं अरु बनै न टालक।
अब भारतमाताहिं चाहिये ऐसे बालक॥2॥
जो करना है, उसे करैं, अपने निज हाथन।
देश-भलाई हेत करैं अभिलाषा लाखन॥
कठिन परिश्रम देखि न कबहूँ मन ते हारैं।
भारी भार निहार न कबहूँ कंधा डारैं॥
करैं काज बनि कुल-कलंक-कारिख-प्रच्छालक।
अब भारतमाताहिं चाहिये ऐसे बालक॥3॥
देखि कठिन कर्त्तव्य उसे जू-जू जनि जानैं॥
ऐसे बालक जबहिं देश के मुखिया ह्वैं हैं।
तब भारत के सकल दुःख दारिद्र नशैं हैं॥
मिटिहैं हित को ताप और कटिहैं जंजालक।
अब भारतमाताहिं चाहिए ऐसे बालक॥