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परस तो गए / अज्ञेय
Kavita Kosh से
आये तो तुम
थोड़ा बरस तो गये!
तरसे इन नयनों को
आह! बड़े हौले
परस तो गये।
प्राणों के तन्तु
कली बन खिले तो नहीं
पर तनिक सिहर
हरस तो गये।
घुटन कुछ गली
गाँठ मन की
कुछ सरकी
खुली नहीं, पर ढिली,
भाव थरथराये,
डर दरका भीतर के पंछी ने
पर तौले उद्ग्रीव हुआ,
उड़ा तो नहीं, पर क्षितिज पर
उसे तुम परस तो गये।
आये तो तुम, थोड़ बरस तो गये।