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पराथना / राजू सारसर ‘राज’

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हे, म्हारा
भाग-विधाता
म्हारै भाग में
बो कीं ई
मति लिखज्यौ
जिकौ थे दे ई
नीं सकौ।
सबदां री अतिरंजणा
कदै-कदै
पड़ जावै भारूं
चिन्ही सी’क जिनगानी सारू
बुद्धि, विवेक बिना
सगती संजम बिना
धन दया बिना
होवै हरमेस
अणरथकारी
दे जावै
अणचिंत्या फळ
अर पच्छै थे
पिछतावौ
स्यात थारी लेखणीं माथै
पच्छै स्सौ की पण
बिरथा
इण सारू
आ पारथना है’क
बो ई’ज लिखौ
जिकौ दे सकौ
जिण सूं म्हूं ई
निबा सकूं
म्हारौ धरम
बिना अड़चण
थानै बी
नीं आवै ताण।