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परिंदे / सुदर्शन वशिष्ठ
Kavita Kosh से
कभी नहीं पहनते गर्म कपड़े
स्वेटर कोट जुराब
छाता नहीं लेते बरसात में
आग नहीं तापते पँखा नहीं झलते
तब भी गाते रहते हैं सदा
उड़ते हैं बरसात के बाद उन्मुक्त
उठते हैं मुंह अंधेरे सर्दियों में
देर शाम तक जागते हैं गर्मियों में
कभी बीमार नहीं होते
बूढ़े नहीं होते
मरते नहीं देखे
जानते हैं दुख छिपाना सुख बाँटना परिंदे
जीते सब के संग
मरते एकान्त में।