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परिंदों ने समेटे पर ज़रा सी धूप बाक़ी है / विनय कुमार
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परिंदों ने समेटे पर ज़रा सी धूप बाक़ी है।
सुनहरे हो गए मंज़र ज़रा सी धूप बाक़ी है।
चलो आओ दिखा दें आँच कुछ गीली उदासी को
कि इस छलनी हुई छत पर ज़रा सी धूप बाक़ी है।
अभी कुछ वक़्त है हम खोल सकते हैं कई गांठे
अभी क्या खोलना बिस्तर ज़रा सी धूप बाक़ी है।
किसी रणछोड़ के बल से न जीतोगे सदा अर्जुन
जयद्रथ का कटेगा सर ज़रा सी धूप बाक़ी है।
मियाँ, सूरज अभी लौटी नहीं है घोसले में माँ
अभी तू खु़दकुशी मत कर ज़रा सी धूप बाक़ी है।
बरहना जिस्म लेकर आ रही इक्कीसवीं दुल्हन
लिखो ऐ बीसवीं कोहवर ज़रा सी धूप बाक़ी है।