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परिचय / नवीन निकुंज
Kavita Kosh से
हम्में पानी छेकां
भाँप बनवोॅ
हमरोॅ धर्म छेकै
चाहे हम्में
पहाड़ोॅ पर चमकौं
नद्दी आ नाला मेॅ बहौं
आकि सिन्धु मेॅ इतरावौं
मतरकि हम्में पहाड़ नै छेकां
नदी-नालो नै छेकां
नै सिन्धुवे हुवेॅ सकौं
बस
कोय यक्ष रोॅ आँखी के
लोरे बनेॅ पारौं
मेघ बनी केॅ
मेघदूत बनेॅ पारौं।