परिचय / संगीता कुजारा टाक
आईने में
अपने आप को
देखते हुए
अक्सर सोचा करती हूँ,
क्या हूँ मैं?
वह जो है हिमालय
उसकी अटलता
या उसकी सबसे बड़ी
ऊपरी चोटी से
टपकती बर्फ की बूंद
जो बन जाती है गंगा
या,
धरती के आखिरी कोने पर
पड़ा हुआ जीवाश्म
जहाँ नहीं पड़े / अभी आदमी के पैर /
या फिर
न्यूयॉर्क, लंदन, मुंबई जैसे शहरों की
सड़कों पर पड़ी हुई कोई लाश
जहाँ नहीं है
संवेदनाओं के लिए कोई जगह
आखिर क्या हूँ मैं?
जंगल के किसी पेड़ की
किसी शाख की कोई पत्ती हूँ
जो चुपचाप बनाती है
अपना खाना
या बाँस का टुकड़ा
जिससे बाकी है
अभी कोई धुन निकलनी
या, राँची जैसे शहर के
किसी छोटे से अपार्टमेंट के
किसी छोटे से किचन में
शोर करती /
खाना बनाती हुई
कोई स्त्री?
क्या हूँ मैं?
आईने में देखते हुए
अपने आप को
अक्सर सोचा करती हूँ मैं!