परिजन / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
नागरी - वंक अलक, रंजित अधर पट पटोर चटकारि
वेश-वचन रसना चतुरि रसवति नागरि नारि।।27।।
ग्रामीणा - पट मलिनहु, वचनहु अपटु, रखितहु रुख मुख - केश
शुचि रुचिवंती ग्राम - तिय हरइछ मन सविशेष।।28।।
छात्री - लुलित अलंक मुख झलक, चल पलक, चुस्त परिधान
कर पुस्तक, गति सुस्त, दृग तडित, अधर मुसुकान।।29।।
नेत्री - आज काज नहि लाजहुक, रहब न आङन ओट
सभा-समाज क बिच पहुँचि अरजब सहजहि वोट।।30।।
अभिनेत्री - सफल फिल्महि क इल्म, छवि क कवित, कवि कैमरे
धुनि पट - ओटहि तिग्म, पट - नदी क छवि मन हरे।।31।।
श्रमिक-बालिका - मलिन वसन, भूषन न तन, रुच्छ केश, कृश गात
श्रमिक बालिका मन क श्रम हरय खरड़ि खड़-पात।।32।।
वन-पालिका - तन मलिनहु मन स्वच्छ, वस न अवसनहु कालिका
अबलहु सबल प्रतच्छ, धनि अधनहु, वन-पालिका।।33।।