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परिणति / तारानंद वियोगी

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बलात्कारक विरूद्ध
एक जोरदार कविता लिखैत छी हम
आ इच्छा करैत छी
जे बलात्कार आब अन्न हुअए !

हम बिसरि जाइ छी जे
बलात्कार करैबला जे हएत
से हमर कविता नहि पढ़त

खूब छी हमहूँ !
चौकी पर ओठंगि क’
कविते टा लिखब खाली
तँ बिसरि ने कोना जाएब ?
बड़ हएब नामी
तँ कहलकै जे अकादमी-कवि हएब !