भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
परित्यक्त स्त्री / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
परित्यक्त स्त्री
किनारे का ठूँठ
गुज़र जाती हैं
कई नदियाँ
उसके आस-पास से
कोई पानी
उसे नहीं छूता।