भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
परिदृश्य में तुम्हारा होना / कुँअर रवीन्द्र
Kavita Kosh से
परिदृश्य में
तुम्हारा होना या न होना
मायने नहीं रखता
सारी सम्वेदनाओं को
दरकिनार करते हुए
मैं अब भी महसूस करता हूँ
तुम्हारी ऊष्मा
तुम्हारी छुअन
अब भी मेरे सामने है
मुझमें कुछ तलाशती
तुम्हारी पनीली आँखें
तुम्हारी वह अन्तिम मुस्कराहट
और
उसके पीछे छिपी पीड़ा
जिससे तुम मुक्त हो चुके हो
नहीं भूल सकता कभी
नही भूल सकता
फिर आना, आओगे न !
कह कर तुम्हारा चला जाना