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परिधि के बाहर / शैलजा पाठक
Kavita Kosh से
तुम्हारी बनाई इस खूबसूरत
बावड़ी में
मेरी दिशाओं के सभी
कोने
किनारों से टकरा कर
आहत हो रहे हैं
एक बार मैं समंदर छूना चाहती हूँ...